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पार्ट-3...मिजोरम रामायण में रावण के 7 सिर, असम में 12:तीर मारकर राम ने फोड़ी रावण की आंख; नॉर्थ-ईस्ट की राम कथाएं

कश्मीर में राजा राम के पहाड़, ओडिशा में राम के पैरों के निशान, बंगाल में सीता कुंड और दक्षिण भारतीय राज्यों में बिखरी अलग-अलग राम कहानियों से गुजरने के बाद हम पहुंचे उत्तर-पूर्व भारत। नॉर्थ ईस्ट राज्यों में भी राम भक्ति की एक अलग धारा है, जो यहां की संस्कृति, लोककथाओं, भाषा, मान्यताओं में मौजूद

भारत के अन्य राज्यों की तरह यहां राम मुख्य आराध्य देव नहीं है, ना ही यहां राम के प्राचीन मंदिर मिलते हैं। हालांकि, रामायण और राम से जुड़ी कहानियां और मान्यताएं यहां की संस्कृति का हिस्सा हैं। राम की कहानियों की तलाश में हम सबसे पहले पहुंचे असम…

नॉर्थ ईस्ट में राम भक्ति
असम की राजधानी गुवाहाटी का सबसे बड़ा मंदिर है, कामाख्या मंदिर। यहां हमारी मुलाकात कामाख्या देवालय के पुजारी और सचिव ज्ञाननाथ शर्मा से हुई।

 

गुवाहाटी से करीब 10 किमी दूर नीलांचल पहाड़ी पर बना मां कामाख्या का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। तंत्र-मंत्र क्रियाओं की वजह से ये मंदिर प्रसिद्ध है।

ज्ञाननाथ बताते हैं, ‘असम में शक्ति की उपासना की जाती है। यहां शिव और कृष्ण की भी पूजा होती है, लेकिन राम का भी नॉर्थ ईस्ट में अलग स्थान है।'

'यहां भी सुबह अभिवादन के लिए राम-राम, सिया राम ही होता है। यहां हनुमान के मंदिर हैं। इन मंदिरों में राम भजन, रामायण कथा का पाठ होता है।’

 

ज्ञाननाथ आगे बताते हैं, ‘राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए हमने मां कामाख्या के दरबार से मिट्टी भेजी है। सनातन धर्म के लोगों के लिए गर्व की बात है कि राम मंदिर बनने जा रहा है। हमें भी राम मंदिर ट्रस्ट से प्राण प्रतिष्ठा के लिए न्योता आया है। हम धूमधाम से अयोध्या रामलला के दर्शनों के लिए जाएंगे।’

राम के गुरु वशिष्ठ अयोध्या से चलकर गुवाहाटी आए
गुवाहाटी के एक और धार्मिक स्थल का अयोध्या और राम से नाता है। यहां राम के गुरु वशिष्ठ का मंदिर है। स्थानीय भाषा में इसे बोशिष्ठो मंदिर कहते हैं। मंदिर के पुजारी सुभाष शर्मा बताते हैं, ‘इस जगह का नाम संध्यासर पहाड़ था और यहीं एक गुफा में ऋषि वशिष्ठ ने तपस्या की थी।’

 

वशिष्ठ मंदिर अब एक संरक्षित आर्कियोलॉजिकल साइट है। पुरातत्व अवशेषों से पता चलता है कि यहां 1000-1100 ईसवी में भी एक मंदिर का अस्तित्व था।

इस मंदिर के गर्भगृह में कुंड है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि पहाड़ से निकलने वाली तीन धाराओं का यहां संगम होता है। इन तीन धाराओं का नाम है- संध्या, ललिता और कांता। इन तीनों धाराओं से मिलकर जो धारा बनती है उसे वशिष्ठ गंगा के नाम से स्थानीय तौर पर जाना जाता है।

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